संवेदना बड़ी या संविधान.......?
तारीख 19 दिसंबर 2015 , स्थान- जंतर मंतर। सुबह से ही तमाम राजनीतिक हस्तियों के पहुँचने का सिलसिला शुरू हो चुका था। दरअसल अगले दिन यानि कि 20 दिसंबर को उस नाबालिग अपराधी की रिहाई होनी थी जो कुख्यात 16 दिसंबर गैंगरेप की वारदात मेें शामिल था जो अब बालिग है। ये सभी निर्भया के माता पिता के प्रति संवेदना व्यक्त करने के लिये पहुँच रहे थे या न्यायालय के फैसले का विरोध करने, यह नहीं पता। निर्भया के माता पिता उक्त स्थान पर सुबह से ही मौजूद थे, हद तो तब हो गई जब सभी को पछाड़ते हुये दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालिवाल ने अपराधी की रिहाई से चंद घंटे पहले दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर दिया। हालांकि अगले दिन एससी द्वारा अर्जी खारिज हो गई और अपराधी की रिहाई भी हो गई। परंतु संवेदना अाधारित विरोध होता रहा, और विरोध अभी भी हो रहा है।
अगर इस विरोध को समीक्षात्मक द्रष्टि से देखें तो यह विरोध स्वाभाविक है, परंतु विरोध करने वालों को यह नही भूलना चाहिये कि वो ना सिर्फ रिहाई का विरोध कर रहे हैं बल्कि न्यायालय के फैसले का भी विरोध कर रहे हैं। यह सर्वविदित है कि न्यायपालिका संविधान से चलती है , न्यायालय संविधान के अनुसार ही फैसले सुनाती हैं। और विरोध का आधार है सिर्फ संवेदना,
अब आप ही फैसला करिये कि संवेदना बड़ी या संविधान..........?
अगर इस विरोध को समीक्षात्मक द्रष्टि से देखें तो यह विरोध स्वाभाविक है, परंतु विरोध करने वालों को यह नही भूलना चाहिये कि वो ना सिर्फ रिहाई का विरोध कर रहे हैं बल्कि न्यायालय के फैसले का भी विरोध कर रहे हैं। यह सर्वविदित है कि न्यायपालिका संविधान से चलती है , न्यायालय संविधान के अनुसार ही फैसले सुनाती हैं। और विरोध का आधार है सिर्फ संवेदना,
अब आप ही फैसला करिये कि संवेदना बड़ी या संविधान..........?
देश की जनता को यह अच्छी तरीके से समझ लेना चाहिए की देश संविधान से चलता है ना की संवेदनाओ से
ReplyDeletehttp://vishvagaurav.blogspot.in/2015/12/blog-post_21.html
ReplyDeleteपंकज और प्रदीप तुम्हारे लिए...
Ji Bhaiya jaroor dekhete hain...
ReplyDeletebohot achha blog likha h.....savendna jaisa shabd is desh me fit hi nai.....
ReplyDeleteDhanyvaad jeetendra bhaiya
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